आप में से बहुत से लोग ऐसी होंगे जों अपने समय के महान आचार्य रह चुके चाणक्य द्वारा लिखी गयी पुस्तक चाणक्य नीति को जरूर पढ़ते होंगे और उनके द्वारा लिखें गये शब्दो को अपने जीवन में भी उतारते होंगे। महान आचार्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में हर किसी के लिये कुछ ना कुछ लिखा है। फिर चाहे वो बच्चा हो महिला हो या फिर फिर पुरुष से लेकर बूढे हो।
चाणक्य ने हर किसी के लिये कुछ ना कुछ लिखा है। लेकिन आज हम आपको चाणक्य द्वारा लिखें गये महिला और पुरुष के बारे में क्या लिखा है। उसके बारे में विस्तार से बताएंगे। जिसमें चाणक्य ने कहा है की शर्म का त्याग करके महिला और पुरुष को करना चाहिए ये काम! वरना हो जाएगी जिंदगी बर्बाद। तो चलिए जानते है इसके बारे में विस्तार से
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किसी भी कार्य करने में नहीं करनी चाहिए शर्म
अपने समय में महान आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में लिखा है की जीवन को अच्छा और सुखमय बनाने के लिये धन कामना काफी अवश्यक है और व्यक्ति जब कोई कार्य शुरू करता है तो उसे उस कार्य को करने में शर्म महसूस होती है। चाणक्य ने कहा है की किसी भी कार्य को करने के लिये व्यक्ति को शर्म नहीं करनी चाहिए। कार्य कोई छोटा बड़ा नहीं होता है। कार्य-कार्य होता है। फिर छोटा हो या बड़ा।
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क्यूंकि अगर कोई व्यक्ति धन कमाने के लिये कोई कार्य करता है और उस कार्य को करने में व्यक्ति को शर्म आती है। तो इससे उसको नुकसान ही होने वाला है। जों उसके लिये और उसके परिवार के लिये काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है और व्यक्ति को जीवन में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में लिखा है की पुरुष हो या महिला। दोनों को किसी भी कार्य करने में शर्म नहीं करनी चाहिए। बस कार्य ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे महिला और पुरुष की इज्जत में कोई दाग लगे।
बाहर का खाना खाने में नहीं करनी चाहिए शर्म
चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में आगे लिखा है की पेट को भरने के लिये भोजन को खाना आवश्यक है और भोजन को खरीदने के लिये धन की जरूरत होती है। लेकिन बहुत से लोग बाहर का खाना खाने में अक्सर शर्म महसूस करते है। फिर वह महिला हो या पुरुष। लेकिन चाणक्य ने कहा है की किसी भी व्यक्ति को बाहर खाना खाने में शर्म कभी नहीं करनी चाहिए। बहुत से लोग बाहर खाना खाने में शर्म महसूस करते है और शर्म के कारण बहुत से लोग भूख से वंचित रह जाते है और कई बार भूखे रह जाते है।
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गुरु से शिक्षा लेने में नहीं करनी चाहिए शर्म
चाणक्य ने कहा है की गुरु से शिक्षा ग्रहण करने में किसी भी तरह की शर्म नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक गुरु ही अपने शिष्य का भविष्य संवारता है और उसको एक अच्छा व्यक्ति बनाने में गुरु का बहुत महत्वपूर्ण रोल होता है। इसलिए गुरु से शिक्षा लेने में शर्म नहीं करनी चाहिए। चाणक्य ने कहा है की एक अच्छा और सफल शिष्य वहीं होता है। जो अपने गुरु से शिक्षा ग्रहण करे और गुरु द्वारा बताये गये गुणों को अपने जीवन में उतारे और उसका दिल से पालन भी करें तो वह छात्र कभी भी जीवन में निराश नहीं होता और उसे सफलता मिलती ही मिलती है।